दशहरा पर्व है जीत का
दुष्टों के संहार का
मेरे और आपके विश्वास का
झूठ और अत्याचार के विनाश का
फिर भी क्यूँ डर लगता है
भीड़ में दिल डगमगाता है
क्यों एक छोटी सी आहट पर
हमें लगने लगता है डर
राम के शरण में होकर भी
मन हमारा मैला है फिर भी
मैली हो गयी है हमारी नियत
ज़मीर से हो चुके हैं बेईज्ज़त
अब तो रोको इस रावण को
मेघनाथ को, कुम्भकरण को
वध करो अज्ञानता का
बलिदान करो आलस का
थाम लो धनुष परिश्रम का
लगाके तीर धीरज का
तानो निशाना असफलता पर
विजयी भव: डर का वध कर.
दुष्टों के संहार का
मेरे और आपके विश्वास का
झूठ और अत्याचार के विनाश का
फिर भी क्यूँ डर लगता है
भीड़ में दिल डगमगाता है
क्यों एक छोटी सी आहट पर
हमें लगने लगता है डर
राम के शरण में होकर भी
मन हमारा मैला है फिर भी
मैली हो गयी है हमारी नियत
ज़मीर से हो चुके हैं बेईज्ज़त
अब तो रोको इस रावण को
मेघनाथ को, कुम्भकरण को
वध करो अज्ञानता का
बलिदान करो आलस का
थाम लो धनुष परिश्रम का
लगाके तीर धीरज का
तानो निशाना असफलता पर
विजयी भव: डर का वध कर.